मेरी खामोशियों को तुम पहचान क्यों नहीं पाए,
इक उम्र गुज़र गयी तुम मुझे जान क्यों नहीं पाए।
इज़हार-ए-मोहब्बत का सलीका मुझे नहीं आता,
ख़ामोश लबों की गुज़ारिश तू समझ क्यों नहीं पाता।
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on Sunday, April 25, 2010
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Khamoshi,
Mohabbat,
Two Liner Shayri
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